द्वादश ज्योतिर्लिंग
द्वादश ज्योतिर्लिंग
कब नहीं जपता शिव मैं तुझको,
बसा लिया है ग्रीव में तुझको।
अधरों पे क्यों नाम हो तेरा,
जब देखूँ हर जीव में तुझको।
न डाली रुद्राक्ष की माला,
न ही गया हूँ कोई शिवाला।
इच्छा नहीं भी मुझे भाँग की,
तेरी धुन में हूँ मतवाला।
धन्य तेरा परिवार है भोले,
गण भी तेरे तुझ सम भोले।
सर्प मयूर या सिंह वृषभ हों,
मूषक के संग इत-उत डोलें।
सोम को धारे सोमनाथ तू,
ओम-कार ईश्वर भी तू है।
काल से बढ़के महाकाल तू,
सकल विश्व का नाथ भी तू है।
शैल निवासी अर्जुन तू और,
नागों का ईश्वर भी तू है।
नाथ अनाथों का घुष्मेश्वर,
वैद्यनाथ रावण का तू है।
भीमाशंकर बना तू रक्षक,
ज्योति का है स्तंभ त्रयम्बक।
द्वापर का है नाथ केदारी,
त्रेता का रामेश्वर रक्षक।
धन्य तू बाबा, धन्य है माई,
सकल जगत में तू विषपायी।
ध्यान में तेरे रमें राम भी,
क्षीरसागर में शय्या शायी।
