STORYMIRROR

ABHILASH MISHRA

Inspirational

4  

ABHILASH MISHRA

Inspirational

हरिहर

हरिहर

1 min
398

बरगद का है पेड़ घना,

जैसे हो मंदिर बना।

छाया में बैठा है जोगी,                          

भस्म से पूरा जिस्म सना।                


सिर पे लिए वो आधा चाँद,

गले डाल वो नाग की माला।

डमरू बंधा हुआ त्रिशूल से,

वट बन बैठा आज शिवाला।        


जोगी के दर्शन करने को,

भक्त जनों की लंबी माला।

पर जोगी की आँखों को बस,

भाए नन्हा-सा एक ग्वाला।            


मोर पंख बांधे जटा में,

गले डाल तुलसी की माला।

बंसी बंधी कमरपट्टे से,

संग नंद आये हैं नंदलाला।         


दोनों अपने कर को जोड़ते,

छवि देख अपनी और मैं।

एक ठहरा पूरक और काल,

अंतर नहीं हरि और हर में।       


घट-घट वासी महादेव ही

सर्वव्यापी नारायण हैं।     

उस ईश्वर को लिए समाए,

प्राणी तेरा अन्तरमन है।         


सत्य यही बस है जानना,

सभी चरों में एक प्राण है।

मैं ब्रह्म हूँ, तू वही है,

आत्मा ब्रह्म, ब्रह्म ज्ञान है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational