मन का तर्पण
मन का तर्पण
अपना तन तन धो लिया, भीतर मन में मैल।
सीरत में कुरूपता, सूरत लागे छैल।।
तन उजला मन मैल का, सही इसे मत जान।
भीतर-बाहर एक सा, यही बना पहचान।।
बाहर बेशक सांवला, भीतर उजला राख।
चाल-चलन को साध ले, बनी रहेगी साख।।
रंग-रूप दो रोज के, जैसे छाया धूप।
अजर-अमर रह काम तो, ढल जाएगा रूप।।
काया माया चार दिन, बदलें पल-पल ढंग।
मनवा अपना साध ले, चढ़ा सही ले रंग।।
तन मन अपना साध ले, सफल साधना जान।
तन-मन काबू में नहीं, उसे साध मत मान।।
अपने मन का मैल धो, तन भी होगा पाक।
मन पावन अनमोल है, तन तो होना खाक।।