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ABHILASH MISHRA

Drama

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ABHILASH MISHRA

Drama

गणपति

गणपति

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जय जय गौरी पुत्र गणेश,

पिता तुम्हारे देव महेश।

सकल देव में प्रथमाराध्य हो,

तुम हो देव विशेष।


पृथुल है काया, लम्ब उदर,

गज का मुख है, अद्भुत वेश।

विघ्नों के तुम सदा हो ईश्वर,

करें वही जो दो आदेश।


आये जगत में जब तुम स्वामी,

मंगल आया तभी अशेष।

द्वार पे बैठ गए थे जब तुम,

करने दिया न किसे प्रवेश।


शीश अलग हो बैठा धड़ से,

पालन किया मातृ आदेश।

तभी से गज का वदन है धारा,

कहलाये हो तुम प्रथमेश।


दंत कटा परशु आघात से,

एकदंत को नहीं है क्लेश।

मूषक लिये की जग परिक्रमा,

पीछे पड़े प्रभु मयूरेश।


ग्वाले का जब रूप धरा तब,

मूर्ख बना ज्ञानी लंकेश।

वैद्यनाथ रहे भारत में ही,

लंका में न हुआ प्रवेश।


गौ का रूप धरा जो तुमने,

हरा ऋषि गौतम का क्लेश।

कावेरी नदी तभी प्रवाही,

गिराया घट लिए काक का वेश।


संग तुम्हारे कृष्ण द्वैपायन

बैठे लिखने ग्रंथ गणेश।

रच डाली थी तब महाभारत,

वृहत काव्य वो ग्रंथ विशेष।


अंकुश पाश मोदक करों में,

वरद हस्त हैं प्रभु गणेश।

वृहत कर्ण हैं, क्षुद्र हैं चक्षु,

उदर कहीं न होता शेष।


पंचमुखी गायत्री माता,

पंचानन हैं प्रभु उमेश।

पांच ग्रीव लिए रामदूत हैं,

अंतिम पंचानन विघ्नेश।


विपरितों को संग लिए तुम,

पूर्णता का देते संदेश।

व्योम कदाचित रूप तुम्हारा,

अवतारी ओंकार गणेश।


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