कृष्ण बलराम
कृष्ण बलराम
सप्तऋषि हैं मार्ग दिखाते,
हफ्ते सुबह है सात उजाली।
रंग सात हैं इंद्रधनुष में,
सात की तो हर बात निराली।
सात समंदर बाँधे धरती,
सुर सात में मंत्र मुग्ध हम।
सात अजूबे दुनिया भर में,
सात जानके जग जाने हम।
आठ सात से एक पग आगे,
पीछे छोड़ श्वेत भाई को।
आदि-शेष से भी जो परे है,
ज्ञान से भी जो ना बूझे वो।
आठ है सब कुछ और न कुछ भी,
अपने मुंह मे जगत समाए।
कहता हमको स्थिरचित्त रहना,
पुष्कर जैसे ज्वार समाये।
साथ साथ हैं शांति समर,
नारायण संग चले भुजंग।
धरती डोले, संग स्वर्ग भी,
पथ पे पड़ें जो इनके पग।
