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Amit Kumar

Abstract

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Amit Kumar

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तपिश

तपिश

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सन्न सा रहा है

सन्नाटों का शोर

कुछ छुपा रहा है खुद को

तन्हाइयों का दौर।


मेरी उम्मीद मुझसे

जाने क्या कह रही है

कहीं दूर किसी बस्ती में

जो आह ! अनसुनी।


अनदेखी अनकही रही

वो अपने दर्द की तपिश से

तपा रही है सबको

सता रही है सबको।


जाने क्या होगा

इस दर्द का

जो चुप्पी साधे

कहीं मौन सा बैठा है।


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