STORYMIRROR

Premnath Yadav

Abstract

3  

Premnath Yadav

Abstract

उसका ज़िक्र होगा।

उसका ज़िक्र होगा।

1 min
234

मेरी आह जो भी सुना होगा

बड़ी ज़ोर से हंसा होगा


गाफिल रहा वो मुझ से फिर भी

गोश-ए-जिगर उसका चीखा होगा


नहीं वो दरमियां फिर भी

अफसाने में उसका ज़िक्र होगा


फूट रहे दिल में आग के फफोले

मगर ज़ुबां पे अल्लाह अल्लाह होगा


मसीहा नहीं मोहब्बत के जहां में

फिर भी जहां में कारे मसीह होगा


बहस छिड़ा है मेंबर से कि हिसाब होगा 

अहल-ए-दानिश कह रहे कुछ नहीं होगा


नहीं मकसद हुस्न पे ग़ज़ल कहना

"प्रेम" फिर भी उसका कसीदा होगा।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract