फिर भी हम तुझे पुकारते हैं
फिर भी हम तुझे पुकारते हैं
हमारे लिए कोई दस्तरखान नहीं नाज़िल किया गया आसमानों से
हमारे लिए कोई मन व सल्वा नहीं नाज़िल किया गया ख़ास मकाम पर
हम पर कोई अब्र का साया भी नहीं किया गया, चिलचिलाती धूपों में
हमारी नंगी आंखों के सामने कोई शक्कुल कमर का वाक्या भी नहीं पेश आया
हमें किसी ज़ालिम बादशाह की आग से भी नहीं बचाया गया कभी
और न ही तो हमारी आंखों के सामने कोई मुर्दा परिंदा उड़ कर आया कभी
हमें किसी अंधे कुंए से उठा कर कोई मिस्र जैसे तख्त पर भी नहीं बिठाया
हमारे जिस्मों पर पड़ी धज्जियों को, किसी ने अय्यूब के कोढ़ की तरह नहीं मिटाया
फिर भी हम तुझे मानते हैं, दिल हो मुफ्लिसी की हालत में तब भी तुझे पुकारते हैं
यही नहीं, बल्कि गिला भी नहीं करते कि क्यूं नहीं करम हम पर अग्यारों की तरह !!
और हमारी ये हालत देख बुत ताना भी देते हैं हमें !!
इसका भी शिक्वा हम, नहीं करते कभी
गैर तो गैर हैं, अपनों से भी बेगाने हुए, फकत तेरी अज़मत के खातिर !!
