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Vandana Singh

Abstract

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Vandana Singh

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मुआयना ना कर ले

मुआयना ना कर ले

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चेहरे का मुआयना ना कर ले..

हंसता हूं आजकल बड़े जोरों से

ठहाके लगाकर, कि कोई मेरे भय लिप्त चेहरे का

मुआयना ना कर ले

निकलता हूं आजकल बड़े कीमती मुखौटे लगाकर,

कि कोई मेरे निष्प्राण चेहरे का मुआयना ना कर ले

संवारता हूं खुद को बड़ी बारीकियों से लीपकर,

कि कोई मेरे खामियों भरे चेहरे का मुआयना ना कर ले

छुपा लेता हूं खुद को भीड़ देखकर किसी स्तंभ की ओट में,

कि कोई मेरे उधड़े हुए चेहरे का मुआयना ना कर ले

बस रोता नहीं हूं आजकल सिसकियां भर कर,

कि कोई मेरे मैले चेहरे का मुआयना ना कर ले

रोज़ जीता हूं मर मर कर, झूठी छवि बचाने को

फुर्सत किसे है यहां? और क्या ही बचा है दिखाने को

फिर भी बड़ी महानता से जीवन पर तर्क देता हूं,

कि कोई मेरे दोहरे चेहरे का मुआयना ना कर ले

डरता हूं शायद पर सच है

कि कोई मेरे वास्तविक चेहरे का मुआयना ना कर ले।



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