तोहफ़ा
तोहफ़ा
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बस यही सोच कर जी उठा
कि कल कितना हसीं होगा ?
आज हारा तो भी क्या हुआ ?
कल फिर वो मैदान होगा।
सोच का फर्क कह लो चाहो तो
कि जिसे तुम हार सोच रहे हो
हो सकता है यह एक धोखा हो
छिपा हुआ उसमें जीत का तोह्फा हो ?