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Kastoori saxena

Romance

3  

Kastoori saxena

Romance

तो क्यों नहीं?

तो क्यों नहीं?

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क्या सही है क्या ग़लत

कोई नहीं जानता

क्या तुम जानते हो?

मैं भी नहीं।


पर अग़र मैं कहूँ,

मैं वही जानती हूँ जो मैं मानना चाहती हूँ

मैं तुम्हें पाना चाहती हूँ

हाँ, जानती हूँ कोई किसी को नहीं पाता

कम से कम इंसान इंसान को तो नहीं।


तुम रेत-से फ़िसल जाओगे

ओस-से विलीन

देह-से मिट्टी

और

क्षण-से विलुप्त

पर क्या नहीं होगे तुम?


रूह-से अमर

ज़ख़्म-से ताज़े

क़ुदरत-से अनवरत और

अतीत-से सत्य

तो क्यों न हम इसी लोक में एक साथ और अलग अलग सदा के लिए हो जाएं?


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