--भंवर---
--भंवर---
आँखें बंद की और एक सपना संजोया,
किसी की मोहर नहीं चाहिए.
बिलकुल मुक्त, बिलकुल आज़ाद। किसी का कुछ नहीं।
एक विशाल महानगर में ऐसा है जैसे
सिक्के वाला करतब है...
सिक्का सरसराता हुआ इस उँगली से उस उँगली..
हर छुअन में पता नहीं पा लिया की खो दिया,
कब जाने चिकनी उँगलियों से सरसराता सिक्का फ़िसल जाये।ज़मींदोज़।
उस अस्त शाम की नाव जैसा जो बड़ी दूरी पर दिखती है,
कभी करीब आती, कभी दूर जाती,
कभी सुबह सी कभी अलविदा सी
घाट जिसमे तैराक उतर जाता है सिक्का ढूंढने..
सिक्का मिले न मिले कुछ पता नहीं. वापस आने का भी क्या पता।
ज़रा दूर से देखोगे तो मैं एक निरीह बहुत छोटा प्राणी हूँ..हुजूम में खो जाने वाला...
छोटी नाव, बस तूफ़ान की देर और सांस तोड़ देगी ।
पर पास आकर देखो, मैं एक इंसान हूँ, पता नहीं।
मैं एक सांस हूँ,जीवन हूँ।
----हज़ार फ़ीट में फैला यह सागर कहता है इसकी सीमायें नहीं हैं
जैसे मेरी हों!
अगर तुम इस भंवर में हो तो सुनो,
ज़रा हाहाकार से हारना।
सबको पता लगे तुम नीलाम हुए,
तुम्हारे ध्वस्त होने का धुआं ऐसा उठे कि आँखों में किरकिराये।
परिस्थिति तो वह होगी जब तुम लौटे और तुम्हे पता न हो तुम जीते या हारे!
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बाक़ी सब लहरें और तुम्हारा निज़ी द्वन्द है पर जीत या हार का शोर तो ज़रूरी है।
जहाँ तक बात है मेरी
मैं सिक्का लेकर लौटूंगा
इंतज़ार करना ।