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dheeraj kumar agrawal

Abstract

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dheeraj kumar agrawal

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तलाश

तलाश

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तन्हा ज़िंदगी में हमसफर की तलाश है

खो गया है कहीं, मेरे मुकद्दर की तलाश है

तन्हाई छा रही है किनारों पर हर तरफ

साहिल की जरूरत नहीं, मुझे समंदर की तलाश है


ज़िंदगी की तन्हाइयों से और क्या मांगेंगे

बस एक खुशनुमा, चमकीले सहर की तलाश है

आज की दुनिया में साये भी पराये हो जाते हैं

इस जहां से हो तन्हा, एक शहर की तलाश है


सांसों में भी मेरी तन्हाइयां ही रहा करती हैं

तुम ढूंढ़ों सुकून को, मुझे बवंडर की तलाश है

सुना है इश्क की राहें बड़ी पथरीली हैं

आसान सी राह दिखा दे, उस रहबर की तलाश है



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