तिरंगा
तिरंगा
कहने लगा अजीत दलाल,
है भारत मां का ऐसा लाल।
जब चलता है दिल खिलता है,
खड़ा हो जाए करे कमाल।
पहन हरे रंग की धोती को,
हरा भरा हो जाता है।
सफेद कुर्ता पहन के,
साधु संत बन जाता है।
चौबीस हाथों का चक्र बना,
शौक से इतराता है।
केसरिया रंग का साफा तो,
चार चांद लगाता है ।
स्वतंत्र हो या गणतंत्र,
झट डंडे पर चढ़ जाता है।
मंद मंद हवा के झोंके से,
धीमा धीमा मुस्काता है।
उसका इठलाना, इतराना,
शहीदों की याद दिलाता है।
इसीलिए हर भारतवासी,
तिरंगे को शीश झुकाता है।
इसीलिए हर भारतवासी,
तिरंगे को शीश झुकाता हैं।।