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Krishna Vivek

Fantasy Inspirational Others

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Krishna Vivek

Fantasy Inspirational Others

तिलिस्मी खिड़की

तिलिस्मी खिड़की

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काश •••••

मेरे सामने वाली खिड़की ऐसी दुनिया में खुलती,

जहाँ से मैं खूब सारी खुशियां इस जहां में ले आती,

कभी धूप से तरबतर मजदूर को खिड़की के ,

उस पार की बारिश के कुछ हसीन पल दिखा लाती। 


काश •••••

कभी ठंड से कंपकंपाते बूढ़े हाथों को,

उस दुनिया के सूरज से घड़ी भर सही मिला लाती। 

बिन माँ के बच्चे को कुछ पलों का वो मीठा एहसास,

उस मजबूर माँ से ममत्व भरी लोरी सुनवा लाती ।


काश •••••

मेरे सामने वाली खिड़की के पर्दे हटा क्षण भर के लिए, 

खुद को भूल चुकी मनमौजी लड़की से रूबरू करवाती। 

ढूंढने को किस्से हज़ार बाकी क्यूँ ना रह जाए फिर भी, 

मैं स्वप्न समझ केवल मुस्कुराहट के मोती बटोर लाती। 


काश •••••

मेरे सामने वाली खिड़की में तिलिस्मी दुनिया होती ,

हर रंग जो मुझे पसंद हैं मैं उस दुनिया से चुरा लाती। 

बचपन की ख़ुशनुमा यादें किसी डिबिया में बांध लेती, 

जवानी के हसीन पलो को किताबों में साज लाती। 



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