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Krishna Vivek

Classics Inspirational

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Krishna Vivek

Classics Inspirational

चलो फिर एक बार ले चले तुम्हें वही

चलो फिर एक बार ले चले तुम्हें वही

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चलो फिर एक बार ले चले तुम्हें वही.... 

जहाँ द्वार पर अशोक व फूलों का श्रंगार हुआ करता था, 

जहाँ का आँगन हर राहगीर का मददगार हुआ करता था। 

चलो देख आते हैं उस आँगन की वो खासियत आज भी है ? 

क्या सामने पर्वत की वो मनमोहक रूमानियत आज भी हैं ?                    


 चलो फिर एक बार ले चले तुम्हें वही.... 

जहाँ किसी कोने की चारपाई को भी इंतजार है, 

जहाँ किसी दीवार के मांडने आज भी बरकरार है। 

मिट्टी की भीनी-भीनी खुश्बु हवाओं में आज भी है, 

उस आँगन में दफ़्न कुछ नए-पुराने राज भी है। 

                  

चलो फिर एक बार ले चले तुम्हें वही.... 

जहाँ लोगों में इंसानियत बाकी आज भी है, 

जहाँ पंछियों का खिलखिलाना आज भी है । 

बेवक्त की दखलअंदाजीया परेशान नहीं किया करती, 

जहाँ आज भी अधूरी उड़ान नहीं हुआ करती।


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