STORYMIRROR

मधुलिका साहू सनातनी

Tragedy

4  

मधुलिका साहू सनातनी

Tragedy

थकान

थकान

1 min
568

आँगन की तुलसी

अभी भी वैसी ही हरीभरी है

पर

अब घर थोड़ा फैला रहता है

बिस्तर पर बिछी चादर

भी तुसी मुड़ी रहती है


पर्दों की झालरें

मटमैली हो चली

ड्रेसिंग टेबल पर

क्रीम की जगह

दवाइयाँ सज गयीं


हर जन्म दिन पर

दवाई की शीशी एक

बढ़ जाती है

ड्रेसिंग टेबल का आईना

भी बूढ़ा हो चला


अब तो अपना अक्स

भी धुंधला दिखता है

लिपस्टिक और क्रीम

की जरूरत सिमट चली

बिन शीशा देखे ही

बाल बन जाते हैं


कदमों की तेजी

छोटे सधे कदमों में बदली

पाजेब की जगह

आयोडेक्स ने लेली

हाथों ने कंगन छोड़

एक छड़ी थाम ली

आंखों का सुरमा

चश्मों के पीछे छिप गया

कानों के बोझ कुछ बढ़ गये

झुमकों की जगह


चश्मों की कमानी

और हियरिंग एड चिपक गए

व्यवस्था बनाने की

हिम्मत टूट चली 

थोड़ी थकान बढ़ चली।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy