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मधुलिका साहू सनातनी

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मधुलिका साहू सनातनी

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कविता

कविता

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मन मे मेरे 

बैठी थी एक कविता 

पूछ रही थी 

कब रचोगी मुझे

मैं बोली

क्या रचना तुम्हे

धरती की सारी 

ये नन्हीं बिटियाएँ 

मेरी कविताएं

फैला रही हाथ 

अवनी से आकाश तक

लुभा रहीं

दुलरा रहीं

आ जाओ तुम भी 

इस धरा पर 

किसी सुनी गोद मे 

खिल जाओ 

मान लूँगी मैं 

तुम्हें अपनी

सद्य कविता।



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