तेरे ही अलफ़ाज़
तेरे ही अलफ़ाज़
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अलफ़ाज़ नहीं मेरे पास की तेरी
बातें कर सकु ,
जो भी चाहे वो सब अदा कर दूँ ?
बस एक वजह बता दे,
की ये सब में तेरे लिए कर दूँ।
हर बार ग़लती मेरी ही थी मान लूँ ?
बस कुछ तो ऐसा कर दे,
की मैं तुझे माफ़ कर दूँ।
भरोसा तो मैं यू इंसान पे भी ना करूँ?
कुछ तो बता दे ऐसा,
के मैं उन्हें बयां कर सकूँ।
मुस्कुराहट की जो तेरी बात भी कर लूँ ?
यू तो न कहोगी,
की उस लतीफे को ही झूठा कर दूँ ।
तू यहीं चाहती थी कि मैं तुझ पे गुस्सा कर दूँ ?
आँखें मेरी आज भी कहेंगी,
की सारी जिंदगी तुझ से रुसवा कर लूँ ।