तेरा इंतज़ार सदियों से
तेरा इंतज़ार सदियों से
तेरा इंतज़ार सदियों से
बनी शिला प्रतीक्षारत हूं,
कब आएंगे रघुनंदन,
गलती मेरी क्या थी राघव??
कोई मुझे बता दे,
जिसने छल से मुझे क्या कलंकित,
वह स्वर्ग में बैठा भोग करे,
उसको दंड नहीं मिला क्यों??
यह कैसा न्याय तुम्हारा है ??
सदियों से प्रतीक्षा में बैठी हूं,
इक आशा लेकर मन में,
कब न्याय मिलेगा रघुवर मुझको ??
गलती हो तब दंड मिले,
न्याय की यह परिभाषा,
सदियों से नारी प्रतीक्षारत है,
बिन गलती दंड मिले न उसको,
न शिला बने, त्यागी न जाए,
राज्यसभा में हो न अपमानित,
माना कि हर युग में तुम,
उसकी रक्षा को आए थे,
फिर भी समाज से अपमानित हो,
पाषाण बनी,
पाताल गई,
केश खोल वन वन भटकी,
जब तक नारी आश्रित होगी,
अपमान उसे सहना होगा,
सदियों तक है इंतज़ार किया,
आश्रित रहकर उसको भी,
मान मिले सम्मान मिले,
पर ऐसा हुआ नहीं किसी भी युग में,
इस कारण अब नारी ने,
यह संकल्प लिया,
सदियों की बंधी बेड़ियों को,
उसने स्वयं ही तोड़ दिया,
तुमने गीता का ज्ञान दिया,
पापी को दंड जरूरी है,
रिश्ता उसका जैसा भी हो,
स्वयं उठो तुम कर्म करो,
फल ईश्वर दे ही देगा,
हर व्यक्ति कर्म करता जाए,
अन्यायी से लड़ता जाए,
पाप करे जो भी इस जग में,
दंड उसे मिलता जाए,
अब नारी ने गीता की वाणी को,
अपना हथियार बनाया है,
अब नहीं अहिल्या,
प्रतीक्षारत होगी,
कब रघुवर आएं उसका उद्धार करें,
वह स्वयं शस्त्र हाथों में लेकर,
अपना न्याय स्वयं मांगेगी,
सदियों तक क्यों करे प्रतीक्षा ??
न्याय तुरन्त अब लेना होगा,
घुट-घुट कर जीने से अच्छा,
कर्मभूमि में लड़ते लड़ते,
विजय पताका फहराना,
या वीर समाधि ले लेना,
हे रघुवर हे रघुनंदन,
हे मनमोहन हे मधुसूदन,
जो ज्ञान दिया रणभूमि में,
उसको लड़कर लेना होगा,
इस जग में जिसने जन्म लिया,
कर्म उसे करना होगा,
बिन कर्म किए कुछ नहीं मिलेगा,
खुद को सम्मानित करने के लिए,
स्वयं हमें कर्म क्षेत्र की रणभूमि में,
अपना क़दम बढ़ाना होगा ।।