'तब और अब'
'तब और अब'
पलके झुक रही,कुछ शर्म करो।
बच जाय जहां कुछ जतन करो।
एक समय था, घर-घर में तुलसी होती थी।
आत्मनिर्भर थे अपने गांव, जैविक खेती होती थी।
पेस्टीसाइड्स जब से डाले, सत्यानाश करा डाला।
उर्वरकों के नाम पें हो रहें नित घोटाला।
इन सत्तर पचहत्तर वर्षों में इतने पेड़ काट डाले।
जंगल सब बीरान हुआ,सूख गये सब नद नाले।
अभी समय है,जग जाओं नहीं तो फिर पछतावोगे।
इतना बढ़ रहा है प्रदूषण, जीवन कैसे बचाओगे।