STORYMIRROR

Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract

4  

Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract

स्वयं में बदलाव

स्वयं में बदलाव

1 min
467

बदल करके खुद को है बदलना ज़माना,

स्वर्ग से भी सुन्दर जगत यह बनाना।

प्रतिकूल पथ को हमें सुगम है बनाना,

सभी संग मिलकर कारवां है सजाना।


सरल तो नहीं हैं जगत की ये राहें,

मंजिल मिलेगी जो हम दृढ़ भाव चाहें।

सरल भाव शिशु सम सरलता निवाहें,

मुश्किल मिटेगी होंगी आसान राहें।


विनम्र आचरण रख सदा शुभ को सराहें,

खुला दिल रखें तो मिलें खुली बाहें।

यहाँ हम क्या लेकर आए थे और , 

यहाँ से हमें क्या लेकर के है जाना।


बदल करके खुद को है बदलना ज़माना,

स्वर्ग से भी सुन्दर जगत यह बनाना।

प्रतिकूल पथ को सुगम है बनाना.


शुभता -अशुभता संग रही है रहेगी,

चुनने की इच्छा - शक्ति व्यक्तिगत रहेगी।

घृणा-प्रेम सरिता जगत में बहेंगी,

ये दो हैं किनारे सत्ता दोनों की ही रहेगी।


स्वयं की विवेक-बुद्धि जिनकी जगेगी,

लेंगे उचित निर्णय चाहे दुनिया हंसेगी।

अशुभता-घृणा तज के हमको तो,

शुभता-प्रेम हम सबको तो -है अपनाना।


बदल करके खुद को है बदलना ज़माना,

स्वर्ग से भी सुन्दर जगत यह बनाना।

प्रतिकूल पथ को हमें सुगम है बनाना।


सरलता-विनम्रता दिल से निभाएं,

कभी भी मगर हम दीन समझें न जाएं।

बनें सच्चे मानव सहृदयता दिखाएं,

कभी किसी लालच के न झांसे में आएं


सदा ही न्यायपथ पर अडिग रहें-

विरोध अन्याय के प्रति डटकर ही दिखाएं।

बदलते वक्त के संग जरूरत के मुताबिक,

बदल करके खुद को बदलेंगे ज़माना।


बदल करके खुद को है बदलना ज़माना,

स्वर्ग से भी सुन्दर जगत यह बनाना।

प्रतिकूल पथ को सुगम है बनाना।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract