सवेरा हो जाता है
सवेरा हो जाता है
हँसते चेहरों के ज़ख्मों का जब अनदेखा हो जाता है
सूनी नज़रों के लफ़्ज़ों का जब अनसुना हो जाता है
कितने सागर होते है जो बिन बात छलकने लगते है
दर्द पुराने अनजाने में कोई कुरेद के जाता है
कितनी जिद्दी होती है उफ़ दिल की ये उम्मीदें भी
टूट नहीं पाती है दिल टुकड़े टुकड़े हो जाता है
किसी एक से आस लगी तो सूझे ना दिल को कुछ भी
साथ में दुनिया चलती है पर दिल तन्हा रह जाता है
इन्तज़ार इक मर्ज़ है जो करना है अपनी मर्ज़ी
लग जाए लेक़िन तो फ़िर उमर तबाह कर जाता है
जाने कब उगता है सूरज अंधेरा जब मन में रहता
आशाओं के दीप न बुझते और सवेरा हो जाता है