स्वाभिमान
स्वाभिमान
स्वाभिमान से जीते हैं मध्यवर्गीय परिवार
छोटी -छोटी जरूरतों को ताक पर रख कर
अपने बच्चो का भविष्य बुनते हैं ।
जेबो मे सिक्के चंद फिर भी बुलंदी हासिल करने
कि ख्वाहिश रखते हैं ।
छतो से रिसते पानी, बंजर आँखो से अपनो का दर्द
महसूस करते हैं ।
आत्मनिर्भर होकर अपने हक की खाकर गुजर बसर करते हैं ।
सुख की मुस्कुराहट, दुख की उदासी मिलकर बाँटा करते हैं ।
पड़ोसी को रिश्तेदार, आगुतक को ईश्वर का दर्जा देते हैं ।
नये जमाने की दिखावट मे ,चेहरे की बनावट से कही
आँखो से ओझल हो गए हैं सच्चे अहसास।
