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Ravi Jha

Abstract

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Ravi Jha

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सूर्योदय

सूर्योदय

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भोर हुई प्रभात रे राही 

उषा किरण लायी है 

चीर तम के वक्ष को 

प्रातः लालिमा छायी है।


उदित दिनकर हो रहा दिवाकर 

शिथिल मंद था जो रत्नाकर 

प्रतिबिम्बित सूर्य मनोहर छवि

प्रथम किरण स्पर्श वर्णित कवि।


रात के खामोशी को तोड़ 

कलरव करते खग विहग 

तू भी राही आलस्य छोड़ 

कर्म क्षेत्र में बढा दे पग।


घोर अंधकार के बाद 

जब 'रवि' किरण लाता है 

हर अस्तोपरांत उदय होता है 

यह पाठ हमें पढाता है।


प्रतिपल चढ रहा सूर्य नभ में 

तू भी शून्य से शिखर पर चढ़

साहस शौर्य पराक्रम से अब

मानव तू नित्य कर्मपथ पर बढ़।


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