सूर्य मुझे बुला रहा है
सूर्य मुझे बुला रहा है
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लाख बांधने के
जतन करो तुम
मेरी संकल्पनाएं
पर जानते हो ना
कि रूह बन्धनों के पार है,
तुम्हारे निर्दयी
दमनकारी,
उपेक्षा व जिल्लत के
दुनियावी बंधन
कुछ समय के लिए
वंचित तो कर सकते हैं मुझे
धूप और हवा से
पर मेरे हिस्से के सूरज का विलोपन
तुम्हारे वश का नहीं।
अरे बावरे !
छोड़ दे यह
आ बेल मुझे मार की अबोध जिद्द...
हवा, पानी, धूप,
खुशबू और नेह को
कौन बांध पाया है,
देख !
वो सूर्य मुझे बुला रहा है।