सूरज और चमक
सूरज और चमक
दिन-7- रंग- नारंगी जो आग, चमक, और ज्ञान का प्रतीक है
प्रभा की सुनहरी खिली-खिली पवन बयार का एहसास कराए वो
गुनगुने प्रकाश मुंडेर पर फैले चमक अपनी फिज़ा में बिखरा ये वो
आँगन में दुल्हन की तरह सज धज गुपचुप आगमन कर अपने आने का एहसास कराए वो
नीड़ हुए सभी खाली प्रातः झूमे डाली-डाली नभ प्रांगण में सतरंगी लालिमा सा छाए वो
खिली है कली-कली महके है फिर फूल पंछी मधुर सा गीत गा कर
भोर होने का संदेश दे आए वो
कल-कल नदियों की ध्वनि, वाद्य यंत्रों से बजते झरने,
कहीं दूर बजती बांसुरी फिर धरती सजने का एहसास कराए वो
सजती है हर मंदिर में जब पूजा की थाली,
अम्मा गूंथे फूलों की माला कानों में पड़े प्रार्थनाओं के स्वर
ऐसे मधुर प्रभात का एहसास कराए वो
जग पथ पर फैले उजियारा जीवन गति अग्रसर हुई दुबारा
पटरी पर दौड़ती रेलगाड़ी के साथ-साथ परछाई बन चलता है वो
मुझे स्वपन से जगाने हर सुबह आता है वो नयन पट मेरे खोलता है
कुदरत का इस पृथ्वी का संचालक है वो. दिन के शुरुआत का प्रतीक है वो
है हमारा मुस्कराता प्यारा सूरज है वो।
