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Rashi Singh

Abstract

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Rashi Singh

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सुरमई शाम

सुरमई शाम

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आज सुरमई शाम से मुलाकात हुई

जुबां ख़ामोश थी इशारों में बात हुई,

शरमा के आगोश में खुद के सिमट गई

अँधेरे को खुद पर यूँ ही गफ़लत हुई ,

चाँद से चेहरे को छुपा लिया घूँघट में

सितारों से मिलने की मान - मिन्नत हुई,

वो लिपटी रही सकुचाई सी खुद से

इंतजार की इबादत! क्या बात हुई ,

थक -हार कर गुजर चली जब रात काली 

सुबह के धुंधलके से शाम की मुलाकात हुई !


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