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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Abstract

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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

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सुपर ही

सुपर ही

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मैं और मेरी बहन

जब छोटे बच्चे थे

उम्र के कच्चे थे

जन्मांतर मात्र एक साल

मतांतर बहुत विशाल

सीखना शुरू किया था

ज्ञान अल्फाबेट से बढ़ा था

अभी ही & शी तक पहुँचा था

मैं खुद को ही मानने लगा था

उसने खुद को शी नही माना था

हम दोनो मे विवाद बढ़ा

तर्क वितर्क हुआ

झगड़ा भी हुआ

बहुत खूब हुआ

मामला माँ की अदालत मे पहुँच गया

बहन कैसे शी और भैया ही बन गया

ममता को जज की भूमिका निभाना था

वादी प्रतिवादी दोनो खून भी अपना था

तथ्यात्मक निष्पक्ष निर्णय आया

भाई ही होता है

बहन शी होती है

दोनो पक्ष मे था घोर असंतोष

पैरेंट के डबल बेंच मे घूंसा केस

मां के आँचल मे बेटा

पिता के गोद मे बेटी

गरम था मासूम मुद्दा वही

ही क्यों बेटा शी क्यों बेटी

दोनो जन्मे एक ही माँ के पेट से

स्कूल भी जाते एक ही गेट से

सिनिअर के जी मे भाई टॉपर

जूनियर के जी मे बहन टॉपर

फिर क्यों आया अंतर

पापा ने प्यार से पूछा

समस्या कहाँ से है आयी

लड़की कमजोर बन धरती पर आई

अतः एस का सपोर्ट ही में लगाई

ऐसी बात भैया ने मुझे बताई

सुन मम्मी पापा को हँसी आई

आँखों आँखों मे हुई कह सुनाई

पापा ने भी कहा सच्च है

लड़कियाँ ही के पहले एस लगाती हैं

क्योंकि लड़कियाँ "सुपर ही" होती हैं

क्योंकि लड़कियाँ ही की शक्ति होती हैं

लड़की ही :

माँ बनकर पालन पोषण करती है

पत्नी बनकर जीवन सुखमय बनाती है

बहन बनकर स्नेह जताती है

बेटी बनकर खुशियाँ बिखेरती है

इसीलिए तो बेटी लक्ष्मी होती है

हर हाल मे नारी पूज्या होती है

ही का विकास व्यक्तिगत उत्थान

शी का विकास परिवार का उत्थान

यही कारण है क्रम मे

स्त्रीलिंग पहले पुलिंग बाद मे आता है

माँ - बाप होता है

सीता- राम होता है

राधा - कृष्ण होता है

भवानी - शंकर होता है

स्त्री - पुरुष ------

बहन भी खुश भाई भी संतुष्ट ।।


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