सुनहरी परी
सुनहरी परी
कल रात बहुत हसीं ख्वाब देखा मैंने,
हर तरफ हरियाली छाई हुई थी,
बागों में फूलों की बहार थी,
कलियों पर भौंरे मंडरा रहे थे,
रंग बिरंगी तितलियाँ चारों तरफ़
मस्ती में झूम रही थीं
सूरज की सुनहरी किरणों ने
पूरी पृथ्वी को सुनहरे रंग से सजा दिया था
एक सुनहरी परी अपनी जादू की छड़ी से छू-छू कर
मेरे आस-पास सोये हुए लोगों को जगा रही थी
पर मैं उठ नहीं पा रही थी
लग रहा था किसी ने जकड़ रखा था मुझे
अपने बंधन में
बहुत कसमसाई,बहुत छटपटाई, बार-बार
करवटें बदलने की कोशिश भी की पर हिल ही न पाई
आखिर सुनहरी परी अपनी सुनहरी
छड़ी लेकर मेरे पास भी आ गयी
और अपनी छड़ी मेरे माथे पर रख दी
मैंने अपनी आँखें खोल दी
सुनहरी परी अभी भी मेरे ऊपर झुकी हुई थी
उसका रूप-रंग देख कर मैं जड़वत् रह गयी,
उसके बदन की खुशबू मानो मुझे
स्वर्ग लोक की ओर खींचे लिए जा रही थी
मैंने अपने शरीर को सोने के सतरंगे तारों से जकड़ा पाया
ओह! यही वो सुनहरे तारों का बंधन था
जो मुझे जकड़े हुए था
शायद … मोह-माया का बंधन …
मैंने विवशता भरी निगाहों से अपने बंधनों को देखा
फिर सुनहरी परी की ओर…
मानो परी ने मेरे हृदय के भावों को पढ़ लिया
उसने तीन बार अपनी छड़ी मुझ पर घुमाई,
तभी माँ की डाँट भरी आवाज़ आयी
'बेटी, कॉलेज नहीं जाना है क्या?'
और उन्होंने मेरी ओढ़ने की चादर खींच ली
मैंने अपने आप को आँगन में खटिया पर पड़े पाया
अपने मुँह के ऊपर से कुछ
सुनहरे तारों को गुज़रते हुए पाया
एक मकड़ी खटिया के एक छोर से
दूसरे छोर तक उन तारों पर सवार थी
शायद वही मकड़ी जब मेरे चेहरे के
पास आती थी तो सुनहरी परी बन जाती थी
सूरज की किरणों ने उसे और उसके
जाले के तारों को सुनहरा और सतरंगी बना दिया था
शायद वो मकड़ी खुशकिस्मत थी
जिसे बगीचे में जाल बुनने का अवसर मिला था
नहीं तो कुछ मकड़ियाँ तो टूटे-फूटे खंडहरों में
या गुफ़ाओं में अपने आपको
सुरक्षित समझ कर जाले बुनती हैं
जहाँ सूरज की रोशनी तक नहीं पहुँचती
फिर भी अँधियारी गलियों से गुज़रते हुए उनके शिकार
जालों तक पहुँच ही जाते हैं
इससे उनकी क्षुधा तो मिट जाती है पर
मन का अँधेरा? अँधेरे मन की गालियाँ ?
सूनी रह जाती हैं नकारात्मक विचारों की तरह
काश उन मकड़ियों ने भी
बाग़-बगीचों में बुने होते अपने जाले,
तो वो खुद सुनहरी हो ही जातीं, उनके जालों में भी
भर जाती सकारात्मकता की सुनहरी किरणें,
और दिखातीं राह उन उलझे हुए लोगों को
जो ताउम्र भटकते हैं नकारात्मक सोच के जालों में फँसे-फँसे,
जीते हैं अन्धकार की दुनिया में,
सकारात्मकता की सोच का संचारण हो जाता उनमें,
और जगमगा उठते सतरंगी रोशनी से भरपूर विचारों से।