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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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सुनहरा ख़्वाब

सुनहरा ख़्वाब

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ये जिंदगी तो एक सुनहरा ख़्वाब है

इस जग में वो ही बनता लाजवाब है

जो शूल में महकता बनकर गुलाब है

यूँ ही नहीं बनता है कोई आफ़ताब है


इस दुनिया में वो ही कमाता नाम है

जिसके सीने में धडकता सत्य नाम है

ये जिंदगी तो एक सुनहरा ख़्वाब है

ये जिंदगी दुबारा न मिलेगी तुझे साखी


कह रहा है, ये समय तुझसे ये बात है

समय रहते ले तू आनंद जिंदगी का

वृद्ध होने पर न रहेंगे तेरे कोई दांत है

संग्रह करने की आदत तू छोड़ भी दे


करता रह अब तू रोज़ाना ही दान है

तेरी जिंदगी सँवर जायेगी,

मरने के बाद भी तेरी याद आयेगी,

तू जिंदगी को जीता रह सुबह-शाम है


शरीर जिंदा रह,आत्मा तेरी मर जाये

ऐसा मत करना साखी तू कोई काम है

ये जिंदगी तो एक सुनहरा ख़्वाब है

जीता वह पीता जो जिंदादिली की शराब है।


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