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SUSMITA MISHRA

Romance Classics

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SUSMITA MISHRA

Romance Classics

सुन रे मेरे प्रेम दिवानी

सुन रे मेरे प्रेम दिवानी

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हँसकर एक दिन किशन बोले, ओ राधारानी मेरे राधारानी।

तुम तो बडी सयानी, मानी, अभिमानी, स्वाभिमानी।

जब हम बंसी बजाते, लाज छोड़ कर तु कियूँ दौड़ी आते।


अनसुनी करके, सास ननन्द के

कहासुनी।

तुझे डर नेहि लगता, लोगो के तानातानी।

मेरे तरफ क्यू खिंचे चले आते हो,

ओ राधारानी मेरे राधारानी।

हँसकर …..............….।


मुस्कुराकर बोले राधे, सुनरे किषन

मुरारी।

तेरे पास तो है शोल सहस्र गोपी,

एक से बढ़कर एक है रानी।

फिर क्यूं हमारे पास तु चलिआते,

हमें हीं कियूँ बांसुरी सुनाते।


हम से ही रास रचाते, हमे ही क्यूँ

करते हो प्रेम दिबानी।

दुनियां क्या में ही हूँ,

एक ही राधारानी, राधारानी।

हँसकर ....................।


हाथ धरकर, मंद-मंद हँसकर, बोले 

किशन मधुर बानी।

सुनरे मेरे प्रेम दिबानी, ओ राधारानी मेरे राधारानी।

प्रेम चीज है ऐसा, करता है सबको 

दिवानी।

जो शरीर से करता है, वो शरीर से

ही मर जाती।

शरीर से ऊपर उठकर, जो प्रेम

करता, वो है सयानी।


मेरे शरीर से प्रेम करते है, सारे गोपियां, सारे रानी।

में तुझसे दूर रहकर बी, कभी तू

मुझे बुलाया नेहीं।

कियूँ की में तेरे अंदर से, बाहर कभी गया ही नेहीं।

ये तू भलीभांति जानती, किसलिये 

बिरह में भी तू मस्त रहती।

जहां निःस्वार्थ प्रेम होती, वहां किशन बस जाती।


तू आत्मा, में परमात्मा, फिरभी

आत्मा में परमात्मा समाती।

ओ मेरे प्रेम दिवानी, इसीलिए 

अमर है हमारी कहानी।

समझे राधारानी, ओ मेरे राधारानी।

हँसकर …।


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