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Meera Ramnivas

Abstract

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Meera Ramnivas

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सुलह बार बार हुई

सुलह बार बार हुई

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दो चार दिन ननिहाल रह कर 

पोता जब घर आया

दादा को हमेशा की तरह से

बरामदे में ना पाया

दादा को इंतजार न करते देख

पोता चौंका

सीधा दादा से मिलने

उनके कमरे में पहुँचा

दादा थे उदास पोते को याद कर रहे थे

सुबह से पोते की बाट जोह रहे थे 

दादा आप कहां छुप रहे हो

क्या कोई खेल खेल रहे हो

पोते की आहट सुन

दादा की आँखों में चमक आ गई

पोते की आवाज सुन

दादा के शरीर में फिर जान आ गई

दादा ने बाहें फैला पोते का स्वागत किया

पोते ने दौड़ कर दादा का मुख चूम लिया

दोनों के बैचेन दिलों को करार आ गया

कमरे में चहुंओर निर्मल आनंद छा गया

दो दिन पूर्व बहू बेटा और दादा में

हुई थी कुछ अनबन 

दादा थे नाराज 

बहू बेटे को भी थी उलझन

कहासुनी के बाद दादा कमरे में चले गये

मौन व्रत धर अनशन एकांत में चले गये

पोते ने हाथ पकड़ा दादा बाहर चल दिए

कई दिनों बाद दादा फिर खिलखिला दिए

दादा पोता मस्ती करने लगे

हँसने बतियाने लगे

दादा पोते की खुशी में बेटा भी शामिल हो गया

ईंट गारे का मकान फिर घर में तब्दील हो गया

कई दिनों से चुप्पी थी घर में

छाई थी मायूसी सबके दिल में

पल भर में सब काफूर हो गई

फिर एक नई सुबह हो गई

बहू चाय नाश्ता ले आई

कड़वाहट चाय में चीनी सी घुल गई

नाराजगी फिर एक बार 

रिश्तों से हार गई

पोता सेतु बना हर बार

सुलह बार बार हुई।।

    


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