सुबह का भुला
सुबह का भुला
सफर अश्क़ के वो
खुद से बेखबर हैं।
भीड़ राह में वो
अनजान '''उम्मीद'' से हैं।
सपनो में यकीन रखते थे ये
आज नींद से बेखबर रहते हैं।
भटके हैं सच की किरण से वो
जो अंधेरो को पहचान देती हैं।
शायद एक फासले की
दूरी कोशिश से शुरू,
जो वक़्त से हालात का
सफर तेय करेगा ।
बस भूला है वो सुबह का
जो शाम को वापस ''खुद'' से मिलेगा।