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chandraprabha kumar

Inspirational

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chandraprabha kumar

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सत्य का साक्षात्कार

सत्य का साक्षात्कार

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अपने सत्य से ऊपर उठकर

वृहत्सत्य का साक्षात्कार करो,

कान सीमित दूरी तक सुन सकते हैं

नेत्र सीमित दूरी तक देख सकते हैं,

तुम्हारे चरण जितनी तुममें शक्ति है 

उससे ज़्यादा दूर नहीं ले जा सकते,

तुम्हारे हाथ तुम्हारी शक्ति से ज्यादा

बोझा नहीं ढो सकते , 

उदर ज्यादा भोजन नहीं पचा सकता

सबकी शक्ति सीमित है। 


आंखों से प्रत्यक्ष दृष्टि में आनेवाले

विशाल ब्रह्माण्ड के बारे में भी,

पूरा नहीं जान पाते, जान सकते नहीं

सीमित साधन से असीमित ज्ञान कैसे मिलेगा?

अन्तर्साधना के अलावा क्या मार्ग है ?

महसूस करो , महसूस करो,

तुममें उस अविनाशी का कण है

उसी की वंशी के स्वर हैं,

चाहे कण मात्र ही हैं

पर वही विद्युत का स्फुलिंग है।


सबको मिला दो तो पूर्ण बन जायेगा

सबको बांट दो तो विभक्त हो जायेगा,

चींटी में भी वहीं प्राण है पर नन्हा है

हाथी में भी वहीं प्राण है पर मोटा है,

उसका ध्यान करो, उसे महसूस करो

ध्यान से ज्ञान -प्रकाश से तमस् दूर होगा, 

ज्ञान चक्षु खोलो नया सवेरा होगा, 

किससे वैर करोगे, किससे घृणा

किससे प्यार करोगे, किससे ममता

उस परिदृश्य में कौन किसका है। 



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