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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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सत्य-ड्यूटी

सत्य-ड्यूटी

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हर खुशी मुझसे साखी रूठी है

सत्य की दे रहा जो मैं ड्यूटी है

बेदर्द ज़माने ने दी उसे जूती है

जो बोला तेरी टांग कहां टूटी है?

मेरी कश्ती भी वहां पे डूबी है

जहां पे ज़मीन भी थी सूखी है

हर खुशी बयार मुझसे छूटी है,

सत्य की दे रहा जो में ड्यूटी है

किस्मत भी हुई अब कलूटी है

ईमान से जो बंद की मुट्ठी है

तम के आगे रोशनी हुई फूटी

है हर जगह जुगनुओं की बारात,

अपने ही लोगों से आज लूटी है

किसे क्या कहे अब भला हम,

खुद के शीशे में तस्वीर झूठी है

फिर में मे साखी जरूर लड़ूंगा,

महाभारत में अभिमन्यु बनूंगा,

सत्य की दे रहा जो में ड्यूटी है

वो पहनता इतिहास में अंगूठी है,

जो करता सत्य ड्यूटी अनूठी है

उनका जीवन फ़िझुल ब्यूटी है

जो भीतर बांधे पशुता खूंटी है!


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