स्त्री पढी़ तो जाना
स्त्री पढी़ तो जाना
स्त्री पढ़ी तो जाना
कि सदियों से छला गया है उसे
वंचित किया गया है हमेशा
हर अधिकार से
कब्जा किया गया है
तन -मन यहां तक विचारों पर भी
स्त्री पढी़ तो जाना
आंगन से बाहर निकल कर
है एक और भी दुनिया
जो है बडी़ खूबसबरत
बस बन्द थी किवाडे़
अब खोल ली हैं उसने
स्त्री पढी़ तो जाना
कुछ रिवाज केवल हैं हथकडी़
जिनमें जकडी़ गई हैं
वो जबरन ही
बडी़ मशक्कत के बाद
जंजीरें तोड़ दी उसने
स्त्री पढी़ तो जाना
उसे भी है हमसफर चुनने का हक
हां ठुकराने का भी हक
आखिर कब से वो ठुकराई गई है
गुड़िया की तरह सजाकर
बिठाई गई है
स्त्री पढी़ तो जाना
उसकी आँखें भी देखती हैं सपने
उन सपनों की कब्रगाह पर
अब वह मातम नहीं मनायेगी
बल्कि हिम्मत को बना पतवार
वो पूरा कर दिखायेगी
स्त्री पढी़ तो जाना
जीने के लिए ही
ईश्वर ने जन्मा है उसे
हर जीव की तरह
वो पल - पल नहीं घुटेगी
कि घुट- घुट नहीं मरेगी
स्त्री पढी़ तो जाना
चीखकर समझा न पाई जिन बातों को
शब्दों का जामा पहना उतार देगी पन्नों पर
वो जान गयी है
कलम में बडी़ ताकत होती है
स्त्री पढी़ तो जाना
ईश्वर ने रचे हैं
सृष्टि को चलाने के लिए
दो सुन्दर प्राणी -स्त्री और पुरूष
अपने अपने गुणों के साथ
शारीरिक विभिन्नता हैं मात्र
वरन एक जैसे
स्त्री पढी़ तो जाना
वो जन्मदात्री है
जन्म दे सकती हैं तो
अपनी अस्मिता से खेलने वालों की
जान ले भी सकती है
स्त्री पढी़ तो जाना
वो नहीं कुचली जायेगी
पितृसत्तात्मकता के पहाड़ के नीचे
नहीं अब बिल्कुल भी नहीं
उसने पढ़ लिया है
"यत्र नार्यन्तु पूज़्यते तत्र रमन्ते देवता " का पाठ
स्त्री पढी़ तो जाना
बेटी, बहन, पत्नी, मां ,
से कहीं पहले वो है एक स्त्री
जो है प्रकृति का सबसे सुन्दर रूप
हे पुरूषों
तुम कभी जान ही नहीं पाओगे
घर की चारदीवारी से बाहर निकल
प्लेन उड़ाने वाली स्त्री
बस लड़ रही है खुद के लिए
तुम डरो नहीं
बस साथ दो
सुनो! तुम तो सदियों से पढे़ लिखे रहे हो ना
सबकुछ जानते हो
उसके हक की लड़ाई में
उसके संग खडे़ हो जाओ
थोड़े से ही सही
तुम स्त्री हो जाओ......
