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Basudeo Agarwal

Classics

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Basudeo Agarwal

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सरसी छंद खेत और खलिहान

सरसी छंद खेत और खलिहान

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गाँवों में हैं प्राण हमारे, दें इनको सम्मान।

भारत की पहचान सदा से, खेत और खलिहान।।


गाँवों की जीवन-शैली के, खेत रहे सोपान।

अर्थ व्यवस्था के पोषक हैं, खेत और खलिहान।।


अन्न धान्य से पूर्ण रखें ये, हैं अपने अभिमान।

फिर भी सुविधाओं से वंचित, खेत और खलिहान।।


अंध तरक्की के पीछे हम, भुला रहे पहचान।

बर्बादी की ओर अग्रसर, खेत और खलिहान।।


कृषक आत्महत्या करते हैं, सरकारें अनजान।

चुका रहे कीमत इनकी अब, खेत और खलिहान।।


अगर बचाना हमें देश को, मन में हो ये भान।

आगे बढ़ते रहें सदा ही, खेत और खलिहान।।

***************

*सरसी छंद* 

"विधान"

सरसी छंद चार चरणों का अर्द्धसम मात्रिक छंद है। प्रति चरण 27 मात्रा होती है। यति 16 और 11 मात्रा पर है अर्थात विषम पद 16 मात्रा के तथा सम पद 11 मात्रा के होते हैं। दो दो चरण तुकान्त। मात्रा बाँट-

16 मात्रिक पद ठीक चौपाई वाला चरण और 11 मात्रा वाला ठीक दोहा का सम पद। छंद के 11 मात्रिक सम पद की मात्रा बाँट 8+3 (ताल यानी 21) होती है।


एक स्वरचित पूर्ण सूर्य ग्रहण के वर्णन का उदाहरण देखें।


हीरक जड़ी अँगूठी सा ये, लगता सूर्य महान।

अंधकार में डूब गया है, देखो आज जहान।।

पूर्ण ग्रहण ये सूर्य देव का, दुर्लभ अति अभिराम।

दृश्य प्रकृति का अनुपम अद्भुत, देखो मन को थाम।।


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