सृजनी
सृजनी
जननी, जग मानस सृजनी,
तुम सृष्टि सत्य समागम हो ।
वेदों में लिखा जो कुछ देखा
तुम ही ब्रह्मांड का वर्णन हो ॥
कण कण में प्रति छाया देखी ,
तुम ही भवप्रीता सुरेखा हो।
दिखता नहीं जो भी नजरों से ,
तुम वही सत्य अनदेखा हो॥
जननी, जग मानस सृजनी,
तुम सृष्टि सत्य समागम हो ।
वेदों में लिखा जो कुछ देखा
तुम ही ब्रह्मांड का वर्णन हो ॥
कण कण में प्रति छाया देखी ,
तुम ही भवप्रीता सुरेखा हो।
दिखता नहीं जो भी नजरों से ,
तुम वही सत्य अनदेखा हो॥