सपूत भारती
सपूत भारती
दिखावटी बनावटी कभी दिखा न शौर्य है।
सपूत भारती सदा बना महान सूर्य है।।
जला वही तपा वही, जगा वही खड़ा वही।
सहस्त्र बार युद्ध में, कृपाण ले लड़ा वही।।
लहू बहा, खड़ा रहा, हटा नहीं रुका नहीं।
शिवा, प्रताप अग्रदूत तो कभी झुका नहीं।
अपार पुष्ट वीर ये, जबान को न तोड़ता।
बचाव देश का करे, कभी न शत्रु छोड़ता।
पुकार देश की सुनी, सचेत हो दहाड़ता।
न एक शत्रु शेष हो, इसी प्रकार मारता।
हज़ार गोलियां चली, प्रचंड युद्ध यूँ चला।
हुआ समाप्त युद्ध तो न शत्रु एक भी बचा।
लगा ललाट पर मही, शहीद भी हुआ वही।
महान वीर से बनी, महान मात भारती ।
समाज, देश, माँ पिता, करें न गर्व क्यों भला,
करोड़ लोग में यही महारथी महान था।
ललाट गोद में रखी, उसे निहारती रही।
निगाह से हि पुत्र की, उतार आरती रही।
शिकार काल का हुआ, चला गया जहान से।
उसे लिए चलो मसान आन बान शान से।