सपनो की दुकान
सपनो की दुकान
सपनो की दुकान खुलवा,
दी थी मुझे रब ने ,
जिसे जो समझ आया वो,
खरीद लिया सब ने,।
सपनो में ही मिल गया ,
ढेर सारा धन ,
मैं भी बहु खुश हुआ देख कर ,
गया था मैं भी धन्ना सेठ बन,।
सपनो में ही आया जो पैसों,
का बहुत घमंड ,
सबको सुना दिया ,
एक तरफा नया नियम ,।
मैं हूं राजा तुम सब हो मेरे अधीन ,
जो न माना उसकी बजा दूंगा बैंड,
तभी बापू ने खीच के मारा डंडा,
टूट गया मेरे सपनो का अंडा,।
कहने लगे उठ बड़े निकम्मे,
कबसे तू दे,रहा है पैसे ,
सो सो कर है खाट तू तोड़े ,
आज मिलेंगे तुझको खूब,
जमकर डंडे ।
