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Poetry Lover

Abstract

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सफर

सफर

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यह एक सफर मात्र ही नहीं,

मंजिल भी है मेरी।


चलना तो तय है सफर में,

लेकिन तकदीर भी है मेरी।


मुझे चलना है कैसे इन रास्तों पर,

यह परीक्षा भी है मेरी।


कई अरमान भी छुपे होंगे इसमे,

जिद भी छुपी होगी मेरी।


लम्बे होंगे चरण टिके इसमे,

तय भी करेगी यह सोच मेरी।


चलते चलते मैं थक भी जाऊंगा,

बेचैनी भी बढ़ती रहेगी मेरी।


धूप छावं आंधी भी आएंगी सफर में,

मजबूती साबित करेगी मंजिल मेरी।


मैं हर वक्त हर क्षण चलता रहूंगा,

लक्ष्य भी पार करेगी यह मेरी।


ये सफर यूँ ही चलता रहेगा,

निरन्तर बदलेगी अब किस्मत मेरी।


डट कर चलता ही जाऊंगा,

जबतक आदत न बदल दे यह मेरी।


यह एक सफर मात्र ही नहीं,

मंजिल भी है मेरी।


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