सफलता के संघर्ष
सफलता के संघर्ष
नारी नाम विदित है त्याग का
पालन हेतु परिवार का।
प्रथम पिता फिर भाई पति के
प्रति कर्तव्य निभाई।
बच्चों की खातिर तो जा भी लुटाई।
इन सब से जब समय बचे
तभी वह देखे अपनी ओर
अपनी भी जीवन की रही
कुछ ऐसी अनसुलझी डोर।
वैसे तो जीवन संघर्षों का नाम है
जिम्मेदारियां ही उसका मुकाम है
इन्हें जिम्मेदारियों को निर्वहन करते
गुजर गई उम्र तमाम।
और 1 दिन आई जब
सेवानिवृत्ति की शाम,
तब जाकर छलके
अरमानों के प्यालो के जाम।
मचल रहे थे जो रह-रहकर दिलों में,
कर रहे थे फरियाद हमसे,
अब तो हमारी भी सुन लो और,
जोड़ लो नाता सृजन से।
जन्मजात प्रतिभा को पुनर्जन्म मिला,
हमारे हाथों को लेखनी और
दिल को सुकून मिला।
जिस दिन से दामन वीणावादिनी के
चरणों का थामा,
पुनः दिल हो गया है
लेखनी का दीवाना
अब हम होश में नहीं रहते हैं।