STORYMIRROR

Surendra kumar singh

Abstract

4  

Surendra kumar singh

Abstract

सोचा भी न था

सोचा भी न था

1 min
205


तुम्हारा नाम सुना था

तुम्हारी कहानियां सुनी थी

तुम्हारे चमत्कार सुने थे

तुम्हारे ब्यापकता के बारे में सुना था

तुम्हारे काम के बारे में सुना था

तुम्हारी तलाश में अनगिन लोगों को देखा था

साधु भी थे तुम्हारी तलाश में

संत भी थे तुम्हारी तलाश में

महात्मा भी ढूंढ रहे थे तुम्हें

और मैं तुम्हारे बारे सोच भर रहा था

तुम्हारे बारे में सुनी गई हर बात पर

विश्वास था मेरा

अभी मैं सोच ही रहा था कि

तुम आ गये थे

मुझे न तो तुम्हारे आने की खबर थी

न यहसास था

न कल्पना थी

और अब हालात ये है कि

विश्वास हो चला है तुम्हारे आने में

साथ साथ चलने में

कितना अद्भुत था वो लम्हा

जब तुम आये थे

कितना सहज था तुम्हारा आना

ऐसे तो कभी नहीं आये थे

अपनी किसी कहानी में,

और अब ये तो स्पष्ट है

तुम न आते तो मैं नहीं होता

तुम हो तो मैं हूँ

तुममें ही खोया हुआ

तुम्हारे ही साथ साथ चलता हुआ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract