STORYMIRROR

Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Classics Inspirational

4  

Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Classics Inspirational

संस्कृति-चरित्र निर्माण न भूले

संस्कृति-चरित्र निर्माण न भूले

1 min
370

हर दिल की होती है यह चाहत ,

इतना हम उठें गगन ही छू लें।

परिवर्तन होता रहता अनवरत,

विकास हेतु बदलाव न भूलें।

विकास के हित बदलाव दौड़ में,

संस्कृति -चरित्र निर्माण न भूलें।


हर क्षण है समय बदलता रहता ,

समय कभी न एक सा रहता।

रहता है ये शांत न है कुछ कहता,

हम निज आत्मा-विवेक न भूलें।

विकास के हित बदलाव दौड़ में

संस्कृति- चरित्र निर्माण न भूलें।


विकास यात्रा का कोई छोर नहीं,

विवेक ही नियंत्रण की डोर सही।

सतत् सत्पथ पर रहें हम बढ़ते,

पर प्रभु को हम कभी न भूलें।

विकास के हित बदलाव दौड़ में

संस्कृति-चरित्र निर्माण न भूलें।


किसी से किसी की कोई होड़ नहीं,

संभल न सकें ऐसा कोई मोड़ नहीं।

धीरज-संयम से निर्णय लेवें सदा,

और हम मानवता को कभी न भूलें।

विकास के हित बदलाव दौड़ में

संस्कृति-चरित्र निर्माण न भूलें।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract