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Abhilasha Chauhan

Abstract

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Abhilasha Chauhan

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संकट लगते छुई-मुई

संकट लगते छुई-मुई

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पीड़ा की गगरी भरकर के

जीवन की शुरुआत हुई

अंगारों पर लोट-लोट कर

संकट लगते छुई-मुई।


उद्वेलित हो कहती लहरें

रूकना अपना काम नहीं

तूफानों को करले वश में

नौका लगती पार वही।

सागर से चुनता जो मोती

प्यासी जिसकी ज्ञान कुईं।

अंगारों पर-------------।।


कर्म तेल की जलती बाती

दीपक का तब मान यहाँ

सुख-शैया के सपने देखे

उसकी अब पहचान कहाँ

उड़ता फिरता नीलगगन में

औंधे मुँह गिर पड़ा भुंई।

अंगारों पर --------------।।


पग के छाले जिसे हँसाए

आँसू जिसके मित्र बने।

ओढ़ दुशाला हिय घावों का

उसने चित्र विचित्र चुने

कष्ट हँसे जब पुष्प चुभोये

कंटक की बरसात हुई।

अंगारों पर लोट-लोट कर

संकट लगते छुई-मुई।।




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