संकट लगते छुई-मुई
संकट लगते छुई-मुई
पीड़ा की गगरी भरकर के
जीवन की शुरुआत हुई
अंगारों पर लोट-लोट कर
संकट लगते छुई-मुई।
उद्वेलित हो कहती लहरें
रूकना अपना काम नहीं
तूफानों को करले वश में
नौका लगती पार वही।
सागर से चुनता जो मोती
प्यासी जिसकी ज्ञान कुईं।
अंगारों पर-------------।।
कर्म तेल की जलती बाती
दीपक का तब मान यहाँ
सुख-शैया के सपने देखे
उसकी अब पहचान कहाँ
उड़ता फिरता नीलगगन में
औंधे मुँह गिर पड़ा भुंई।
अंगारों पर --------------।।
पग के छाले जिसे हँसाए
आँसू जिसके मित्र बने।
ओढ़ दुशाला हिय घावों का
उसने चित्र विचित्र चुने
कष्ट हँसे जब पुष्प चुभोये
कंटक की बरसात हुई।
अंगारों पर लोट-लोट कर
संकट लगते छुई-मुई।।
