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Jiwan Sameer

Abstract

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Jiwan Sameer

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संघर्ष

संघर्ष

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सूखा सूखा रे

सब सूखा रे 

मन सूखा तन सूखा 

पत्तापत्ता सूखा रे 

बंजर बंजर सब बंजर 

कूचा कूचा सूखा रे 


आकाश सूखा 

धरती सूखी 

नगर सूखा 

डगर सूना सूना रे 

नदियां सूखी 

पनघट सूखा 

बिंदिया सूनी सूनी रे 


आ जा परदेशी 

घर आ जा रे

बस्ती सूनी नयन सूखे

हवा सूूनी ऋतु सूने

सूरज सूना चांद सूना 

तारेतारे सूने रे


पंछी बिछुड़े 

संगी बिछुड़े 

बिछुड़े रिश्ते नाते रे 

बोलो प्रिय तुम क्यों रूठे 

तुम क्यों रूठे सजनवा रे 


फिर भी है

पलकें भीगी भीगी

सांसें हैं उखड़ी उखड़ी 

संघर्ष बडे-बडे

अनुभव कड़वे कड़वे 

पर लक्ष्य पर डिगे डिगे

ध्येय से अढ़े अढ़े


बातें हैं अधूरी अधूूरी

रातें हैं पूरी-पूरी 

हम हैंं संभले संभले

तुम फिि भी बिगड़ेे बिगड़े


सपने जागे जागे

अधर प्याासे प्यासे

मैं जहाँ था

तुम जहां थी

वहीं पड़ी

और जीवन बीत गया! 


प्राण मैं सींचता रहा

लहू भींचता रहा

रात दिन में ठन गई

काल की बन गई

हुंकार में 

टंकार में 

हिय में 

भय में

मरण के शूल उभरने लगे

और जीवन बीत गया! 


भीषण युद्ध में 

विषम परिस्थितियों में 

चाल खुशियों की चली

दाल भ्रम की गलने लगी

समझ के फेर में 

नासमझी रही

और जीवन बीत गया !  


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