संग रहने में दर्द
संग रहने में दर्द
प्रिय डायरी के अनुभव की आज प्रेरणा,
"आज तक"-"तेज" टी वी पर संजय सिन्हा की कहानी,
घरेलू हिंसा की बढ़ीं शिकायतें लाॅक डाउन-काल में,
यह रिपोर्ट निज कहानी में उन्होंने ने मानी।
आज कोरोना कहर से भयाक्रांत सब देश,
लाक डाउन में हो रहा कुछ परिवारों में क्लेश,
परिजन रहते थे व्यस्त सब एकल था परिवार,
रहे संग-संग जब देर तक तब जागा अहंकार।
नोंक-झोंक से चल रहा था व्यस्त दिनों में काम,
साथ बिताना रात दिन उन्हें गम दे गया तमाम,
रही गनीमत निज देश में-जो मिले हाथ बजी ताली,
पर चीनी वुहानियों ने अर्जी तलाक की डाली।
बर्दाश्त मैं ही क्यों करूं-आए मन में विचार,
मेरे पहले से ही हैं बड़े- इस पर अनेक ही उपकार,
निज त्रुटियां बिसराईं सभी-भूले उसके सब उपकार,
अहम् भाव हावी हुए-बढ़ने लगी तकरार।
मैं तेरे से कम नहीं-मुझे तेरे बिन कुछ गम नहीं,
तेरा दिया मैं खाऊं न-मैं भी कुछ कम कमाऊं न,
सच्चा तेरा प्यार नहीं-तू मेरा कोई करतार नहीं,
तेरी मुझको जरूरत नहीं-अपनी अलग ही राह सही।
सात जन्म का संग था- अग्नि साक्षी फेरे सात,
किस प्रभाव में निभ ना सके-केवल ये इक्कीस दिन-रात,
झूठे रिश्तों की खुल गई बस इतने ही दिन में पोल,
खुद की श्रेष्ठता के भाव से-कोई सहे न दूजे के बोल।
प्रभु जी बल दे दो हम सभी को वैर घटे बढ़े प्यार,
भारतीय संस्कृति फिर से सजे- मजबूत हो रिश्तों की दीवार,
सबको हम वही सम्मान दें-जिसकी खुद को है चाह,
पतन ये रिश्तों का रुके उनको मिले सर्वोत्तम ऊंची राह।
