स्नेह बंधन
स्नेह बंधन
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स्नेह सबको बांधता है।
शबरी का झूठा बेर भी
राम को पकवान भासता है
स्नेह सबको बांधता है।
वर्ष चौदह पहरे पर
लखन लला रात जागता है
स्नेह सबको बांधता है।
पादुका धर सिंहासन पर
भरत स्वयं वैराग्य पालता है
स्नेह सबको बांधता है।
भगिनी का संताप, विलाप
दशानन को भी सालता है
स्नेह सब को बांधता है।
जनक सुता की खोज में
वानर भी वारिधि लांघता है
स्नेह सबको बांधता है।
शोकव्याकुल जानकी को
त्रिजटा का आंचल लाभता है
स्नेह सब को बांधता है।
गिलहरी का कंकर भी
सागर पर सेतु बांधता है
स्नेह सबको बांधता है।