!!संध्या दीपक के क्षण हैं!!
!!संध्या दीपक के क्षण हैं!!
भानु ढ़लो किंचित क्षणों में
कि संध्या दीपक के क्षण हैं।
कर प्रेम, नेह पुष्पों का तर्पण
अन्तर्मन के कलित गहन से
करो भुवन -भवसागर पार
कि संध्या दीपक के क्षण हैं।।
वट, पीपर तरु शाखों से
चिर-नव उतरो चौबारों से,
फिर हर्षागत का आवभगत
कि संध्या दीपक के क्षण हैं।।
अद्य स्वयं को मोह भंवर से
मुक्त, धरा के अन्त: उर से,
प्रतिबद्ध होगी सांध्य क्रीड़ा को,
धराम्बर का अघट्य मेल हो
कि संध्या दीपक के क्षण हैं।।
भानु ढलो किंचित क्षणों में,
कि संध्या दीपक के क्षण हैं।।
काठिन्य निवारण : -
गहन= कानन ,वन
हर्षागत = हर्ष आगत
आवभगत= स्वागत
अघट्य = असंभव