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Anuradha अवनि✍️✨

Abstract

4.3  

Anuradha अवनि✍️✨

Abstract

!!संध्या दीपक के क्षण हैं!!

!!संध्या दीपक के क्षण हैं!!

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भानु ढ़लो किंचित क्षणों में

कि संध्या दीपक के क्षण हैं।


कर प्रेम, नेह पुष्पों का तर्पण

अन्तर्मन के कलित गहन से

करो भुवन -भवसागर पार

कि संध्या दीपक के क्षण हैं।।


वट, पीपर तरु शाखों से

चिर-नव उतरो चौबारों से,

फिर हर्षागत का आवभगत 

कि संध्या दीपक के क्षण हैं।।


अद्य स्वयं को मोह भंवर से

मुक्त,‌ धरा के अन्त: उर से,

प्रतिबद्ध होगी सांध्य क्रीड़ा को,

धराम्बर का अघट्य मेल हो

कि संध्या दीपक के क्षण हैं।।


भानु ढलो किंचित क्षणों में,

कि संध्या दीपक के क्षण हैं।।


काठिन्य निवारण : -


गहन= कानन ,वन

हर्षागत = हर्ष आगत 

आवभगत= स्वागत 

अघट्य = असंभव


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